Mission & Vision
गर्भस्थ शिशु के स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण शरीरो का परिशोधन
Objective
शरीर से स्वस्थ, मन से सन्तुलित एवं विवेकवान तथा भावनात्मक रुप से सक्षम भावी पीढी का निर्माण
Our Concept
विश्व के नवनिर्माण के लिये एक संपूर्ण पीढ़ी के निर्माण की आवश्यकता है। व्यक्ति से परिवार और समाज, समाज से देश और देशों से विश्व का निर्माण होता है। वर्तमान परिवर्तन के दौर में मनुष्य ने साधन सुविधाओं के अम्बार खड़े कर लिये हैं परन्तु सच्चे और अच्छे संस्कारवान मनुष्यों के अभाव में सुख शांति का लक्ष्य कोसों दूर है। प्रश्न यह है कि अच्छे और सच्चे संस्कारवान मानव का निर्माण कैसे हो? ऋषि प्रणीत संस्कार परम्परा ही इसका एकमात्र समाधान है जिसमें जन्म पूर्व से ही जीवात्मा के संस्कार संवर्धन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। विज्ञान की दृष्टि से देखा जाये तो मानव की अधिकांश विकास यात्रा जन्म से पूर्व गर्भ से ही आरम्भ हो जाती है जिसमें ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों के साथ मष्तिष्क का विकास हो जाता है। हमारे प्राचीन ऋषियों ने इसे हजारों वर्ष पूर्व समझ लिया था इसीलिये इस संस्कार रोपण की प्रक्रिया का शुभारम्भ गर्भाधान संस्कार से किया गया था। आज का आधुनिक विज्ञान भी इस बात को समझ चुका है और इसकी पुष्टिï भी करता है। अत: समग्र पीढ़ी के निर्माण का शुभारम्भ इसी अवस्था से करना होगा।
क्या गर्भकाल से ही शिशु का प्रशिक्षण सम्भव है ?
आयु: कर्म च वित्तं च विद्या निधनमेव च।
पञ्चेतान्यपि सृज्यन्ते गर्भस्थस्यैव देहिन:॥
अर्थात्- आयु, कर्म, धन, विद्या और मृत्यु गर्भ में रच जाती है।
हाँ, यह पूर्णरूप से सम्भव है क्योंकि इसके सशक्त प्रमाण प्राचीन भारत में अनेक स्थानों पर उपलब्ध हैं।
संस्कृति
माता पिता से केवल शरीर ही नहीं प्राप्त होता, मन और संस्कार भी प्राप्त होते हैं। ऋषियों ने जीवात्मा के जन्म जन्मान्तरों एवं माता पिता के संसर्ग से उत्पन्न दोषों के परिमार्जन तथा शुभ संस्कारों के रोपण का कार्य गर्भाधान के साथ ही सम्पन्न करने का विधान बनाया था। गर्भाधान पुंसवन एवं सीमन्तोन्नयन संस्कार इसी प्रक्रिया के अंग हैं। शिशु के शरीर और मन का संगठन उसके जन्म के उपरांत नहीं अपितु गर्भावस्था से ही आरम्भ हो जाता है।
वैदिक और पौराणिक साहित्य में इस बात के पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध हैं जैसे- शुकदेव और अष्टïावक्र को ब्रह्मज्ञान का प्रशिक्षण, माँ सुभद्रा द्वारा पुत्र अभिमन्यु को गर्भकाल में चक्रव्यूह भेदन का ज्ञान, सुनीति द्वारा ध्रुव को, जीजाबाई द्वारा शिवा का लालन-पालन, सीता द्वारा लव कुश का, कयाधु द्वारा प्रहलाद का, शकुन्तला द्वारा भरत का शिक्षण इसी का प्रमाण है।
विज्ञान
आधुनिक विज्ञान भी भारतीय ऋषियों की परंपरा का पूर्ण समर्थन कर रहा है। इन दिनों यंत्र उपकरणों व विविध गतिविधियों के माध्यम से गर्भिणी के आवेग-संवेग का शिशु पर स्पष्टï प्रभाव देखा जा सकता है। शोधकर्ताओं ने गर्भिणी के साथ किये गये व्यवहार अथवा सुख दुख की परिस्थितियों में शिशु को प्रतिक्रिया व्यक्त करते देखा है। अनेक देशों में इस वैज्ञानिक शोध को आधार बनाकर इच्छित संतति प्राप्त करने हेतु तंत्र खड़े किये गये हैं ।
WorkPlan
समय की माँग और हमारे दायित्व-
- शक्तिपीठों व अन्य संस्कारित स्थानों पर पर दंपत्ति शिविर का आयोजन या नव दंपत्ति शिविर लगाना।
- सतत परामर्श हेतु पंजीयन।
- गर्भसंस्कारों का समयानुकूल आयोजन एवं उसमें चिकित्सकीय जांच परामर्श की निशुल्क व्यवस्था करना।
- मास के किसी भी रविवार को सामूहिक संस्कार आयोजन करना।
- इसे एक व्यापक जन आंदोलन बनायें।
- जन्मोपरांत
शिशु के शेष संस्कार समयानुसार सम्पन्न करायें, बाल संस्कार शाला के
माध्यम से उन संस्कारों को पुष्टï करने का कार्य हो, संस्कृति मण्डल - युवा
मण्डल, प्रज्ञा / महिला के माध्यम से महामानवों की एक समग्र पीढ़ी का
निर्माण संभव है ।
चिकित्सक क्या करें - गर्भ संस्कार हेतु गर्भिणी को प्रेरित करना ।
- गर्भिणी तक इससे सम्बन्धित पत्रक, और संस्कार की जानकारी उपलब्ध कराना ।
- सामूहिक गर्भ संस्कारों के आयोजन के लिये सहयोग ।
- अपने यहाँ सामूहिक संस्कार का आयोजन कराना ।
- गर्भ संस्कार के आयोजन में नि:शुल्क चिकित्सकीय परामर्श के आयोजन ।
- स्वागत कक्ष में सम्बंधित वाल हैंगिंग लगना एवं बच्चो के निर्माण की छोटी छोटी पुस्तके रखना ।
Strategy
ऋषि परम्परा का पुनर्जीवन : क्या करें - कैसे करें ?
विचार क्रान्ति
अभियान के अंतर्गत इन दिनों 'आओ गढ़ें संस्कारवान पीढ़ी' आंदोलन के माध्यम
से इसे विश्वव्यापी बनाने की योजना तैयार की गई है। चूँकि इन दिनों
गर्भाधान संस्कार देश काल परिस्थिति के अनुसार व्यवहार्य नहीं है अत:
इसके स्थान पर -
• दम्पत्ति शिविर के माध्यम से माता पिता को आवश्यक शिक्षण प्रशिक्षण दिया जाता है।
•
गर्भाधान के उपरांत सम्पूर्ण गर्भकाल हेतु गर्भ संस्कार प्रक्रिया के
अन्तर्गत दैनिक, साप्ताहिक, मासिक एवं त्रैमासिक अन्तराल पर भावी माता-पिता
एवं परिवार को आवश्यक शिक्षण दिया जाता है। ये संस्कार प्रेरणा,
मार्गदर्शन के साथ दिव्य गुणों के जागरण व स्थापन का कार्य करते है ।
संस्कार संवर्धन की क्रियायें- अपनी दिनचर्या सुव्यवस्थित एवं नियमित रखें।
- गर्भस्थ शिशु से नियमित संवाद करे जैसे उससे बात की जा रही हो, विविध प्रेरक गीत आदि सुनाये।
- प्रतिदिन
अपने इष्ट मंत्र का जाप - श्रवण एवं उगते हुए सूर्य की तेज का ध्यान करें ।
द्वेष , ईष्र्या, आदि दोषों से बचें तथा दूसरो की यथा शक्ति सेवा -सहयता
करें महापुरुषों की जीवनी, प्रेरणाप्रद कहानियां , प्रेरक प्रसंग आदि
सत्साहित्य का नियमित स्वाध्याय करें ।
- प्रात: काल उठते ही आत्मचिंतन (आत्मबोध) एवं रात्रि शयन के पूर्व आत्म समीक्षा (तत्त्व बोध) करें ।
- आहार-विहार में संयम एवं नियंत्रण- सुपाच्य, पौष्टिक अर्थात हितभुक् मितभुक् ऋतभुक् का ध्यान रहे ।
- दैनिक योग-व्यायाम, प्राणायाम, मुद्रा अभ्यास आदि नियमितता से करें ।
- पारिवारिक सौहार्द्र एवं सकारात्मक वातावरण बनाये रखने हेतु संध्या कालीन पारिवारिक गोष्ठी की जाये।
- प्रति
रविवार यज्ञ में भागीदारी करेें, किसी देव स्थान पर दर्शन का नियमित क्रम
हो इससे विचार सात्विक बने रहते हैं, मनोरंजन हेतु किसी रमणीक स्थान पर
जायें।
- भावी माता व शिशु के उत्तम स्वास्थ हेतु नियमित चिकित्सकीय जांच परामर्श का क्रम रखे ।
- दम्पत्ति शिविर, सन्तानोत्पत्ति हेतु इच्छुक नव दम्पत्तियों को अनुशासन पालन, तपपूर्ण जीवन हेतु प्रेरणा
- पुंसवन संस्कार कराना - तृतीय मास में गर्भिणी और परिवार को आवश्यक निर्देश, गर्भपूजन, औषधि अवघ्राण चरु ग्रहण व आश्वास्तना
परिवारजनों हेतु निर्देश - भावी
माता की नियमित दिनचर्या, सकारात्मक व सात्विक वातावरण के निर्माण हेतु
घरवालों द्वारा वैचारिक भावनात्मक सहयोग देना, पारिवारिक पंचशीलों का
अनिवार्य रूप से अनुपालन।
An Appeal
यह अभियान देशव्यापी बनाया जा रहा है। प्रत्येक संस्थान/ मंडल आदि इस अभियान को संस्कार शाला के साथ मोहल्ला, ग्राम व नगर में फैलाये। यह युग निर्माण अभियान का आधारभूत कार्यक्रम कहा जा सकता है। जिस प्रकार से अच्छी कृषि हेतु उन्नत किस्म के बीजों को उपयोग किया जाता है इसी प्रकार से एक श्रेष्ठï पीढ़ी के निर्माण हेतु गर्भ संस्कार के माध्यम से श्रेष्ठ संस्कारों के बीजारोपण का कार्य किया जा सकता है । अत: इस अभियान में अभिभावक, चिकित्सक व लोकसेवी भाई-बहनों के सहयोग की भाव भरी अपेक्षा है ।